Tuesday, 22 October 2024

..और सुभाष के अनुगामी बन गए दियरा के शाही

योगेंद्र प्रताप शाही..। ये वो शख्स हैं जो गुलामी के दिनों में ब्रिटिश फौज में अफसर थे। अंग्रेज परस्त दियरा राजपरिवार से ताल्लुक रखते थे। ..नेताजी और उनकी आजाद फौज से कुछ यूं प्रभावित हुए कि उन पर देश भक्ति का ऐसा जुनून चढ़ा कि सबकुछ छोड़-छाड़ नेताजी के अनुगामी बन गए। सन् 1857 की जंग-ए-आजादी में दियरा रियासत को अंग्रेज परस्त माना जाता था। हालांकि अपने कुलीन एवं अभिजात्य संस्कारों की वजह से यह रियासत और इस रजवाड़े के लोग सूबे में अपनी पहचान कायम किए। इन्हीं में से एक थे योगेंद्र प्रताप शाही, जो कि दियरा रियासत के प्रबंधक कुंवर कौशलेंद्र प्रताप शाही के पुत्र थे। पढ़ाई-लिखाई के बाद वे ब्रिटिश फौज में शामिल हो गए। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौज की ओर से जंग भी लड़ी। ये दौर अभी चल ही रहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी सक्रिय राजनीति छोड़ कांग्रेस से इस्तीफा देकर देश को आजादी दिलाने के लिए सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजा दिया। नेताजी के इस अंदाज से शाही यूं प्रभावित हुए कि उन्होंने ब्रिटिश वर्दी उतारकर बगावत कर दी।..और सुभाष के अनुगामी बन गए। नेताजी ने उनकी हिम्मत की दाद दी और आजाद हिन्द फौज की प्रचार शाखा आजाद हिन्द रेडियो की कमान उन्हें सौंप दी। फौज से संबंधित बुलेटिन प्रसारित करने का दायित्व शाही को मिला। 'ये आजाद हिन्द रेडियो है अब वाईपी शाही से बुलेटिन सुनिए' ये शब्द उस वक्त रेडियो में गूंजते थे। आजादी मिलने के बाद लंबा वक्त शाही ने एकाकी ही राजधानी लखनऊ के अपने हैदराबाद कालोनी में ही गुजारा। वे अच्छे संगीतज्ञ और विचारक भी थे। सन् 2011 में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके पौत्र अभिषेक शाही बताते हैं कि बाबा जी ने कभी खुद को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया। वे कभी भी प्रचार माध्यमों में नहीं आना चाहते थे। हालांकि राजेश्वर सिंह लिखित 'सुलतानपुर का इतिहास' पुस्तक में उनके योगदान का भरपूर जिक्र मिलता है।

नेपाल के राजघराने ने सुल्तानपुर की दियरा स्टेट में ब्याही थी अपनी बेटी

मोतिगरपुर(सुल्तानपुर)। भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है। लाख कोशिशों के बाद भी इस डोर को कमजोर नहीं किया जा सकता। देश का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां इक्का-दुक्का ही सही नेपाल के लोग रोजी-रोटी के सिलसिले में न हों। यही हाल रिश्तों का भी है। जिला भी इन संबंधों से अछूता नहीं है। नेपाल के राजघराने शाहवंश ने सुल्तानपुर की दियरा स्टेट में अपनी बेटी ब्याही थी। पूर्व में नेपाल के प्रधानमंत्री रहे व राणा राजवंश के संस्थापक की प्रपौत्री की शादी दियरा राजघराने में हुई है।
नेपाल में जंग बहादुर राणा ने राणा राजवंश की स्थापना की थी। बाद में शाह वंश (मौजूदा राजवंश) के बीच हुई तकरार में जंग बहादुर राणा को नेपाल में सरकार संचालन का दायित्व मिला। वह वर्ष 1860 के करीब नेपाल के पीएम बने। शाह वंश को बंटवारे में राजवंश मिला था।
भारत व नेपाल के राजघराने व सरकार में रिश्ते की डोर यहीं से शुरू हुई। नेपाल के पूर्व पीएम व राणा राजवंश के संस्थापक जंग बहादुर राणा ने अपनी तीन पौत्रियों की शादी भारत के राजघरानों में कराई। इसमें एक नैनीताल में दान सिंह बिष्ट, दूसरी सिरवारा में बाबू भीम सिंह व तीसरी बलरामपुर राजघराने में हुई थी।
सिरवारा में ब्याही उनकी पौत्री महारानी लक्ष्मी मिट्ठू मइया रानी की पुत्री इंदुबाला शाही की शादी सुल्तानपुर के दियरा राजवंश के मत्स्येंद्र प्रताप शाही के साथ हुई। तब से दियरा स्टेट से नेपाल के राणा वंश में रिश्तों की डोर बंधी चली आ रही है। मत्स्येंद्र प्रताप शाही बताते हैं कि राणावंश के अंतिम प्रधानमंत्री महाराज मोहन शमशेर सिंह राणा रहे।
नेपाल के राणा वंश से ही दियरा स्टेट का रिश्ता नहीं रहा बल्कि बंटवारे में शाह वंश के हाथों गये राजंवश से भी दियरा स्टेट का बेटी-दामाद का संबंध रहा। दियरा स्टेट के राजा कौशलेंद्र प्रताप शाही (बब्बन महराज) के सात पुत्रों में दूसरे नंबर के पुत्र योगेंद्र प्रताप शाही की शादी नेपाल के मौजूदा राजवंश (शाहवंश) में हुई थी।
नेपाल के शाह वंश की पुत्री प्रेम राज राजेश्वरी का विवाह योगेंद्र प्रताप शाही के साथ हुआ था। हालांकि योगेंद्र प्रताप शाही की कोई संतान नहीं थी। नेपाल में शाहवंश (राजवंश) में संबंध होने की वजह से दियरा स्टेट का लगाव आज भी वहां से है।
दियरा स्टेट के मत्स्येंद्र प्रताप शाही बताते हैं कि शाहवंश की उनकी दादी प्रेम राज राजेश्वरी शाही को शाह वंश की ओर से भूमि भी दान में मिली थी लेकिन उन्होंने वह जमीन उसी परिवार को दे दी। शाह वंश के गया प्रसाद शाह एक समय पर नेपाल के खाद्य एवं रसद मंत्री भी रहे। नेपाल के राजवंश से देश के कई राजघरानों के रिश्ते हैं। ऐसे में यह रिश्ता तोड़ पाना नेपाल के लिए आसान नहीं है।

Tuesday, 8 March 2022

*सुलतानपुर जिले के दियरा राजघराने पर रख दृष्टि*

मोतिगरपुर। आदिगंगा गोमती के किनारे की भूमि पर अधिपतियों की एक और महत्वपूर्ण शाखा राज साह का घराना था। राज साह के तीन बेटे, ईश्री सिंह, चक्रसेन सिंह और रुप चंद थे। ईश्री सिंह से नौ पीढ़ियों के बाद विजय चंद हुए, जिनके तीन बेटे थे। हरकरन देव, जीत राय और जिव नारायन। हरकरन देव नानेमाऊ तालुकदार के पूर्वज थे, जीत राय के वंशज मेवपुर दहला, मेवपुर धौरुआ और भदैया के मालिक थे, और जिव नारायन के उत्तराधिकारी दियरा के राजा थे। जिव नारायन के चौथे वंशज ने गोमती के किनारे राजाओं के छः उपनिवेशों में से पहले का नेतृत्व किया और नदी के तट पर दियरा में खुद को स्थापित किया। यह घराना सुलतानपुर के बचगोटीस की मुख्य शाखाओं में से एक बन गया।
उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में बाबू माधो सिंह, जिव नारायन के वंशज में ग्यारहवें स्थान पर, जिस संपत्ति के शासक थे उसमें 101 गांव शामिल थे। बाबू माधोसिंह को एक सफल राजा के रूप में याद किया जाता है। जिन्होंने अपनी संपत्ति का सफल प्रबंधन किया। वर्ष1823 में बाबू माधोसिंह की मृत्यु हो गई। उनकी विधवा ठकुराईन दारियाव कुंवर, एक चर्चित महिला थी जिन्होंने कष्ट और उथलपुथल के वाबजूद न केवल बहादुरी से अपना खुद का प्रबंध किया बल्कि उन्होंने अपने पति की तुलना में अपने जीवनकाल में और  राज्य का विस्तार करने के साथ सम्पति को बढ़ाया भी। उत्तराधिकार की सीधी रेखा ठकुराईन के पति बाबू माधोसिंह की मौत के साथ खत्म हो गई थी। राज्य अगला पुरुष उत्तराधिकारी बाबू रुस्तम साह था, जिसे ठकुराईन नापसंद करती थी। बाबू रुस्तम साह उस समय के नाजीम महाराजा मानसिंह की सेवा में था और ठकुराईन को पकड़ने में उनकी मदद की। दबाव के चलते ठकुराईन को उनके पक्ष में एक समझौता लिखना पड़ा। स्वाभिमानी महिला ठकुराइन दरियाव कुंवर इस बात से काफी दुखी हुई और कुछ  ही महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। रुस्तम साह को नाजिम द्वारा संपत्ति का अधिकार दिया गया था। रुस्तम साह को बाद में पता चला कि नाजिम की सहायत किये जाने में उनके इरादे ठीक नहीं थे। एक युद्ध के दौरान रुस्तम नाजिम को मारने वाला था कि एक पंडित की सलाह पर कि समय शुभ नहीं है रुस्तम ने नाजिम को छोड़ दिया। बाद में रुस्तम साह ने ब्रिटिश सीमा पर शरण मांगी और उन्हें दियरा का तालुकदार बनाया गया जिसमें 336 गांव शामिल थे। रुस्तम साह ने अंग्रेजों से विद्रोह के दौरान उनको उत्कृष्ट सेवा प्रदान की थी। वर्ष1877 में रुस्तम साह का निधन होने के बाद उनके भतीजे राजा रुद्र प्रताप सिंह ने उनका स्थान लिया। जो दियरा स्टेट के अंतिम शासक हुए। (सुलतानपुर गजेटियर से..)

दियरा स्टेट का नेपाल राजघराने से रहा है गहरा रिश्ता....

नेपाल के राजघराने शाहवंश ने सुल्तानपुर की दियरा स्टेट में अपनी बेटी ब्याही थी। पूर्व में नेपाल के प्रधानमंत्री रहे व राणा राजवंश के संस्थापक की प्रपौत्री की शादी दियरा राजघराने में हुई है। नेपाल में जंग बहादुर राणा ने राणा राजवंश की स्थापना की थी। बाद में शाह वंश (मौजूदा राजवंश) के बीच हुई तकरार में जंग बहादुर राणा को नेपाल में सरकार संचालन का दायित्व मिला। वह वर्ष 1860 के करीब नेपाल के पीएम बने। शाह वंश को बंटवारे में राजवंश मिला था। भारत व नेपाल के राजघराने व सरकार में रिश्ते की डोर यहीं से शुरू हुई। नेपाल के पूर्व पीएम व राणा राजवंश के संस्थापक जंग बहादुर राणा ने अपनी तीन पौत्रियों की शादी भारत के राजघरानों में कराई। इसमें एक नैनीताल में दान सिंह बिष्ट, दूसरी सिरवारा में बाबू भीम सिंह व तीसरी बलरामपुर राजघराने में हुई थी।
सिरवारा में ब्याही उनकी पौत्री महारानी लक्ष्मी मिट्ठू मइया रानी की पुत्री इंदुबाला शाही की शादी सुल्तानपुर के दियरा राजवंश के मत्स्येंद्र प्रताप शाही के साथ हुई। तब से दियरा स्टेट से नेपाल के राणा वंश में रिश्तों की डोर बंधी चली आ रही है। मत्स्येंद्र प्रताप शाही बताते हैं कि राणावंश के अंतिम प्रधानमंत्री महाराज मोहन शमशेर सिंह राणा रहे।
नेपाल के राणा वंश से ही दियरा स्टेट का रिश्ता नहीं रहा बल्कि बंटवारे में शाह वंश के हाथों गये राजंवश से भी दियरा स्टेट का बेटी-दामाद का संबंध रहा। दियरा स्टेट के राजा कौशलेंद्र प्रताप शाही (बब्बन महराज) के सात पुत्रों में दूसरे नंबर के पुत्र योगेंद्र प्रताप शाही की शादी नेपाल के मौजूदा राजवंश (शाहवंश) में हुई थी। नेपाल के शाह वंश की पुत्री प्रेम राज राजेश्वरी का विवाह योगेंद्र प्रताप शाही के साथ हुआ था। हालांकि योगेंद्र प्रताप शाही की कोई संतान नहीं थी। नेपाल में शाहवंश (राजवंश) में संबंध होने की वजह से दियरा स्टेट का लगाव आज भी वहां से है।

.. जब सुभाषचंद्र बोस का अनुगामी बन गया दियरा का शाही खून  

योगेंद्र प्रताप शाही..। ये वो शख्स हैं जो गुलामी के दिनों में ब्रिटिश फौज में अफसर थे। अंग्रेज परस्त दियरा राजपरिवार से ताल्लुक रखते थे। ..नेताजी और उनकी आजाद हिन्द फौज से कुछ यूं प्रभावित हुए कि उन पर देश भक्ति का ऐसा जुनून चढ़ा कि सबकुछ छोड़-छाड़ नेताजी के अनुगामी बन गए। सन् 1857 की जंग-ए-आजादी में दियरा रियासत को अंग्रेज परस्त माना जाता था। हालांकि अपने कुलीन एवं अभिजात्य संस्कारों की वजह से यह रियासत और इस रजवाड़े के लोगों ने सूबे में अपनी अलग पहचान कायम की। इन्हीं में से एक थे योगेंद्र प्रताप शाही। जो कि दियरा रियासत के प्रबंधक कुंवर कौशलेंद्र प्रताप शाही के पुत्र थे।पढ़ाई-लिखाई के बाद वे ब्रिटिश फौज में शामिल हो गए। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौज की ओर से जंग भी लड़ी। ये दौर अभी चल ही रहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी सक्रिय राजनीति छोड़ कांग्रेस से इस्तीफा देकर देश को आजादी दिलाने के लिए सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजा दिया। नेताजी के इस अंदाज से शाही यूं प्रभावित हुए कि उन्होंने ब्रिटिश वर्दी उतारकर बगावत कर दी।..और सुभाष के अनुगामी बन गए। नेताजी ने उनकी हिम्मत को दाद दी और आजाद हिन्द फौज की प्रचार शाखा आजाद हिन्द रेडियो की कमान उन्हें सौंप दी। फौज से संबंधित बुलेटिन प्रसारित करने का दायित्व शाही को मिला।'..ये आजाद हिन्द रेडियो है, अब वाईपी शाही से बुलेटिन सुनिए।' ये शब्द उस वक्त रेडियो में गूंजते थे। आजादी मिलने के बाद लंबा वक्त शाही ने एकाकी जीवन राजधानी लखनऊ के अपने हैदराबाद कालोनी में ही गुजारा। वे अच्छे संगीतज्ञ और विचारक भी थे। सन् 2011 में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके पौत्र अभिषेक शाही बताते हैं कि बाबा जी ने कभी खुद को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया। वे कभी भी प्रचार माध्यमों में नहीं आना चाहते थे। हालांकि जिले के राजेश्वर सिंह लिखित 'सुलतानपुर का इतिहास' पुस्तक में उनके योगदान का भरपूर जिक्र मिलता है।

Sunday, 1 December 2019

'कौन सुनेगा, किसको सुनाए.... विधायक और सांसद से शिकायत के बाद भी समस्या का निस्तारण नहीं हुआ

'कौन सुनेगा, किसको सुनाए.... वाली कहावत स्थानीय कस्बावासियों के लिए पूरी तरह सटीक बैठती है। ग्राम पंचायत, बीडीओ, एसडीएम, स्थानीय विधायक व वर्तमान महिला सांसद तक से लोग जल निकासी की समस्या के निजात दिलाने की गुहार लगाते थक चुके है। लेकिन अभी तक अगर कुछ हासिल हुआ तो सिर्फ कोरा आश्वासन। लोगों के घरों से लेकर नालियों व सड़क पर जमा है गंदा पानी। दुर्गYह न्ध व जल संक्रमित बीमारियों के बीच रहने को मजबूर है मोतिगरपुर ब्लॉक चौराहे के व्यापारी और स्थानीय लोग।

   h
       लखनऊ-बलिया राजमार्ग पर मोतिगरपुर कस्बे में जल निकासी की समस्या
 
                                   जल निकासी न होने से गंदे पानी से भरी नाली
 
 
 
 
 
 
क्या कहते है बाजारवासी-----
 
1-
अनिल मिश्र (युवा व्यापार मंडल अध्यक्ष)--
पिछले हफ्ते एसडीएम जयसिंहपुर को ज्ञापन दिया था। लेकिन अभी तक सफाई नहीं हो सकी। राजमार्ग पर जल भराव से आये दिन लोग गिरकर चोटिल हो रहे है। तेज दुर्गंध के बीच जल संक्रमित बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है।

2-
अखिलेश अग्रहरि (व्यवसायी)----
सभी जनप्रतिनिधियों से कई बार शिकायत के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो सका। सांसद से उम्मीद थी, लेकिन अभी तक निराश ही हाथ लगी है।

3-
अभिषेक सिंह 'राणा' (बीडीसी सदस्य/ कांग्रेस जिलाध्यक्ष)----
भाजपा शासन में विकास सिर्फ कागजों में चल रहा है। मेरे द्वारा खुद इस समस्या के समाधान के लिए दो बार क्षेत्र पंचायत में प्रस्ताव दिया गया, लेकिन उपेक्षा के चलते आज तक ब्लॉक मुख्यालय पर एक भी कार्य नहीं कराया गया।

4-
बबलू बरनवाल (व्यवसायी)----
आये दिन राहगीर गंदे पानी में फिसलकर गिर रहे है। कई घरों में पानी जमा है। समस्या का शीघ्र निराकरण होना चाहिए

Tuesday, 5 November 2019

गंगा, गायत्री, गीता व गोवर्धन की तरह पूजनीय है गाय

विजेताओं को पुरस्कृत करते कांग्रेस जिलाध्यक्ष अभिषेक सिंह 'राणा' व विधायक सीताराम वर्मा

*भूपेश पाण्डेय


 
        
 पन।   पर अच्छी नस्ल के गोवंशो का पालन करने वाले गोपालकों को पुरस्कृत भी किया गया। वहीं गन्ने की अ 

      
 
     
 
   
  
    




 
    
  

  
                                            


                    
  


 
  
यक द्वारा पुरस्कार दिया गया।
   अच्छी नस्ल की गाय का चयन करते चिकित्सक  
       प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को स्वर्गीय अंबिका प्रसाद सिंह की याद में मनाया जाने वाला गोपाष्टमी मेले का आयोजन उनके पौत्र शशिविंद सिंह "बेचन"  द्वारा आयोजित द्वारा किया गया। कार्यक्रम में आए हुए क्षेत्र के रामबरन महाविद्यालय प्रबंधक अजय कुमार सिंह ने कहा कि, ''गोमूत्र से निर्मित पंचगव्य तन-मन  और आत्मा को शुद्ध कर देता है। तनाव और प्रदूषण से भरे  वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझने के बाद हमें गोधन की  रक्षा में पूरी तरह से जुड़ जाना चाहिए। तभी हम गोविंद-गोपाल की पूजा को सार्थक कर सकते हैं। सनातन काल से ही गाय को देवताओं का प्रतिनिधि माना गया है।"  कांग्रेस के नवनिर्वाचित जिलाध्यक्ष अभिषेक सिंह 'राणा' ने कहा कि, "गाय के गोबर की खाद से फसलें अच्छी होती है और सब्जी, फल, व अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है। आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है इसलिए हमें गौ पालन को बढ़ावा देना चाहिए।" 
मेले में आये पशुओं का परीक्षण करते पशु चिकित्सक

कार्यक्रम की अध्यक्षता वयोवृद्ध पं. रामअयुग पांडेय ने की। मेले में पशु चिकित्सकों की टीम ने कैंप लगाकर किसानों को गोपालन से संबंधित जानकारियां देते हुए निःशुल्क दवाओं का वितरण भी किया। गोपाष्टमी मेले में देसी बछिया में डड़वा कला के कबि यादव प्रथम और हमजाबाद के रानू को द्वितीय स्थान मिला। संकर बछिया वर्ग में सरैया के संतराम वर्मा प्रथम और हमजाबाद के निखिल को द्वितीय स्थान मिला। बैल जोड़ी में डड़वा कला के मोहित यादव पहले और राम बहाल दूसरे स्थान पर रहे। देसी गाय वर्ग में पहाड़पुर के राधेश्याम सिंह और संकर गाय वर्ग में डड़वा कला के सच्चेलाल यादव प्रथम स्थान पर रहे। 
मेला शिविर को संबोधित करते विधायक सीताराम वर्मा

कार्यक्रम के अंत में विधायक द्वारा प्रथम द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहे गोपालकों को पुरस्कृत किया गया गन्ने की उन्नत किस्म की उपज के लिए हमजाबाद के श्यामलाल को प्रथम पुरस्कार दिया गया। कार्यक्रम में संयोजक अरविंद सिंह "पप्पू", चीनी मिल जीएम रामजी सिंह, ओपी चौधरी, बासुदेव यादव, संजय सिंह, कमलेश सिंह, राम अछैबर सिंह, विनोद सिंह आदि उपस्थित रहे।

Tuesday, 1 October 2019

एक लाख की स्मैक के साथ दंपति गिरफ्तार

मोतिगरपुर। क्षेत्र में कई महीनों से फल-फूल रहे स्मैक के कारोबार पर अंकुश लगाते हुए थानाध्यक्ष मोतिगरपुर ने दंपति को गिरफ्तार किया। पकड़े गये दंपति के पास से एक लाख रुपये से अधिक कीमत की स्मैक बरामद की गयी है।
मालूम हो कि ऑपरेशन अंकुश अभियान के तहत थानाध्यक्ष मोतिगरपुर रतन कुमार शर्मा ने कई अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की। इसी क्रम में थानाध्यक्ष को पता चला कि क्षेत्र के बॉर्डर पर स्थित श्रीरामनगर चौरे बाजार के पास पिछले कई महीनों से स्मैक का कारोबार फल-फूल रहा है। स्मैक की लत युवाओं में तेजी से फैल रही थी। रविवार शाम करीब 5 बजे थानाध्यक्ष रतन कुमार शर्मा, एसआई प्रमोद यादव हमराहियों के साथ क्षेत्र भ्रमण पर थे, इसी बीच मुखबिर की सूचना पर जय माँ सरस्वती बाल विद्या मंदिर श्रीरामनगर चौरे के पास एक दंपत्ति को गिरफ्तार किया। पकड़े गये दंपति के पास से जमा तलाशी के दौरान 32 ग्राम स्मैक व 1520₹ नगदी बरामद की गयी। पकड़े गये दंपति की पहचान स्थानीय थाने के श्रीरामनगर चौरे निवासी इस्लाम उर्फ शहबान पुत्र बरसाती व मोमिना पत्नी इस्लाम के रूप में हुई। थानाध्यक्ष रतन कुमार शर्मा ने बताया कि, " पकड़े गये दंपति बाहरी जिलों से स्मैक लाकर नशे का कारोबार करते थे। पकड़े गये स्मैक की कीमत करीब 1 लाख रुपये से अधिक है। दोनों को जेल भेजा गया।

Monday, 30 September 2019

पूर्वांचल का ऐतिहासिक पांडेबाबा धाम सैकड़ों वर्ष बना है लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र

*भूपेश पाण्डेय 
                                                                  

मोतिगरपुर। जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी दूर स्थित पांडेय बाबा ब्रह्मधाम सैकडों साल से लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। यहाँ प्रतिवर्ष क्वार महीने में विजयादशमी को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
    किंवदंती के मुताविक करीब 350 वर्ष से पूर्व बढ़ौनाडीह नामक स्थान पर धरमंगल पांडेय का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। पांच वर्ष की अल्पायु में ही माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद से ही बालक धरमंगल का मन तप में लग गया। वे घनघोर जंगल में गर्मी के मौसम में पंचाग्नि, ठंड में जल एंव बरसात में खुले आसमान के नीचे तपस्या करते थे। उम्र के साथ ही उनकी कीर्ति भी चारों तरफ बढ़ने लगी। तपोबल से ही उनके वस्त्र आसमान में सूखते थे। संयोग से तत्कालीन स्थानीय राजघराने का राजकुमार शिकार करते हुए उसी जंगल मे आ गया और देर शाम तक शिकार न मिलने पर अगले दिन आने की नीयत से गोमती नदी के  दूसरे किनारे पर स्थित सराय (वर्तमान में मीठापुर-चौपरिया) नामक स्थान पर रुक गया। अगले दिन पुनः शिकार की तलाश में आपके आश्रम के नजदीक पहुँच गया। वही पास में ही एक गरीब परिवार की नवयुवती ईंधन के लिए उपले एकत्र कर रही थी। राजकुमार प्रेम आसक्त हो उससे दुराचार का प्रयास करने लगा। ब्राह्मण देव के हस्ताक्षेप राजकुमार उस समय तो क्षमा मांगकर सराय वापस चला गया, लेकिन बदले की भावना से ब्राह्मण को मारने के लिए सराय के लोगों को षडयंत्र के तहत भेजा। लेकिन ब्राह्मण के तेज को देखकर सारे लोग वापस लौट आये। अंत में सबने मिलकर रग्घू नामक जल्लाद को ब्राह्मण का सिर काटने के लिए भेजा और कहा, कि ऐसा न करने पर राजद्रोह के आरोप में उसके पूरे परिवार को मार दिया जायेगा। जल्लाद रग्घू भी ब्राह्मण का तेज देख उन्हें मारने का साहस नहीं कर सका। तीन दिन बाद वो ब्राह्मण के पैरों पर गिर पड़ा और सारी बातें बताकर अपने परिवार की रक्षा की भीख मांगने लगा।

सुलतानपुर जिले के लखनऊ -बलिया राजमार्ग पर बढ़ौनाडीह स्थित ब्राह्मण देव ( पांडेबाबा ) का                                         ऐतिहासिक धाम
ब्राह्मण देव ने कहा इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, तुम तो राजधर्म का पालन कर रहे हो, लेकिन इस षडयंत्र में शामिल राजकुमार व सराय के लोगों का सर्वनाश अवश्य होगा। तुम अपने धर्म का पालन करो। इसके बाद जल्लाद ने उनकी हत्या कर दी। बाद में राजपरिवार व सराय के लोगों का धीरे-2 पतन होता गया। मृत्यु बाद ब्रह्म के रूप में ब्राह्मण देव का आतंक क्षेत्र में फैल गया। वे लोगों से स्वप्न के माध्यम से अपने लिए स्थान मांगने लगे। सभी क्षेत्रवासियों ने ब्राह्मणों द्वारा नवरात्रि में नौ-दिनों तक शांति पाठ कर क्वार माह की विजयादशमी को ब्राह्मण देव को उनके ही आश्रम के एक देव-वृक्ष (पीपल) में स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष विजयादशमी को तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता आ रहा है।
           पांडेयबाबा के मेले में उमड़ा जन सैलाब 
◆ मान्यता है कि सावन माह के सोमवार या शुक्रवार को ब्राह्मण देव के दर्शन-पूजन करने से पशुओं की गंभीर बीमारियों से रक्षा होती है। पशुओं की रक्षा के लिए लोग पशुओं की संख्या के बराबर कौड़ी व माला-फूल चढ़ाते है। धान की नई फसल चढ़ाने से कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।
                      झूले का आनंद लेते मेलार्थी

◆ कई बड़ी हस्तियां झुका चुकी है सिर...
पूर्वांचल के ऐतिहासिक पाण्डेयबाबा मेले में जहाँ कई प्रदेश के लोग बाबा के दर्शन करने आते है । वही कई राजनैतिक व सामाजिक हस्तियां भी बाबा के धाम में मत्था टेक चुकी है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्रीपति मिश्र, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पं. केसरी नाथ त्रिपाठी, पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबू केदारनाथ सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद डॉ. संजय सिंह, उत्तर प्रदेश के पूर्व काबीना मंत्री पं. जय नारायण तिवारी, बाबू। विनोद सिंह, पूर्व राज्यमंत्री ओम प्रकाश सिंह, राम रतन यादव व विश्वनाथ दास शास्त्री, वरुण गांधी, शैलेन्द्र प्रताप सिंह,  देवेंद्र पांडेय, सूर्यभान सिंह सहित दर्जनों हस्तियां बाबा का आशीर्वाद प्राप्त की है।